हिमाचल की जनता के लिए फिलहाल महंगी दवाओं से कुछ राहत की उम्मीदें जगी हैं। सरकार ने डॉक्टरों को सस्ती जेनेरिक दवाएं देने के लिए अपने नियमों में परिवर्तन किए हैं।
वर्ष के पूर्वार्ध में ही सरकार ने डॉक्टरों को महंगी ब्रांड वाली दवाओं की अपेक्षा उसी रसायन की जेनेरिक दवाएं देने का निर्देश दिया था। साथ ही यह कि यदि वे कुछ महंगी दवाएं रोगियों को लिख रहे हैं तो उनका स्पष्टीकरण उन्हें लिखित में देना होगा। सरकार ने सरकारी डॉक्टरों को पर्चों की कार्बन कॉपी साथ में रखने की और उन्हें सरकारी कार्यालय में जमा कराने का निर्देश दिया था। बाद में लेखा पुनरीक्षण में पाया गया कि लगभग 400 डॉक्टरों ने जेनेरिक दवाओं की अपेक्षा फार्मा कंपनी द्वारा प्रायोजित महंगी दवाएं ही लिखीं। उन पर कार्रवाई की जा रही है। डॉक्टरों और बड़ी फार्मा कंपनियों की जुगलबंदी को बंद करने के लिए सरकार को अभी कई कदम आगे चलना है। सरकार को इससे संबंधित एक विधेयक लाकर यह सुनिश्चित करना होगा कि जेनेरिक दवाएं सभी स्थानों पर सुविधापूर्वक मिल जाएं और उनमें प्रयोग किए गए रसायनों की उचित गुणवत्ता की जांच की जाए। साथ ही हर गरीब को यह सुविधा व सूचना प्रदान की जाए कि सस्ती जेनेरिक दवाएं सभी स्थानों और सभी लोगों की पहुंच में उपलब्ध होंगी।दरअसल, हालत यह है कि जिन दवाओं की कीमत फार्मा कंपनियां 8 रुपये तय करती हैं, जेनेरिक दवाओं में वे एक रुपये के मूल्य पर उपलब्ध हैं। आखिर जनता दवाओं की 8 गुनी कीमत क्यों दे। मालूम हो कि जेनेरिक दवाएं चलन में फिसड्डी क्यों हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि कई निर्माताओं की दवाएं कई क्वालिटी टेस्ट से बच निकलती हैं, जिसका फायदा फार्मा कंपनियों की दवाएं उठाती हैं। जेनेरिक दवाओं की बाजार में अनुपलब्धता भी कारण है। सरकार सुनिश्चित करे कि जेनेरिक दवाओं के जांच मापदंडों से कोई भी दवा बचने न पाए। इनकी उपलब्धता आम आदमी तक आसानी से हो।